भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में साँप / 25 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आदमी ने
साँप साँपिन केॅ
जोड़ करैत देख
वै पर डाइल देलकै कपड़ा
बोललै कचहरी में काम एैतै
साँप कहलकेॅ
पूरे जीवन भैर/जे तोय पहननेॅ
ऊ काम नै एैलो तेॅ
ई काम कि ऐतौ।
अनुवाद:
आदमी ने
साँप-साँपिन को जोड़ करते देख
उसपर डाला कपड़ा
बोला कचहरी में काम आयेगा
साँप ने कहा
पूरे जीवन भर/तुमने जो पहना
वह काम नहीं आया, तो
यह क्या काम आयेगा।