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शहर में साँप / 32 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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साँप आरो आदमी के बच्चा
एक दोसर के देख चिल्लाय उठलै
सुनके दोनों के बाप ऐलै
साँप आदमी केॅ/आदमी साँप केॅ
देख केॅ ठिठेक गेलै/पीछू घूइम के
दोनों अपन-अपन घोॅर चैल गेलै
घोॅर में/आदमी के बच्चा नें पूछलकै
बाबूजी ओकरा मारलोहो कियेने
वैं कहलकै बेटा
ऊ भी तेॅ आदमीये के रूप छिकै
अनुवाद:
साँप और आदमी के बच्चे
एक दूसरे को देख/चिल्ला उठे
सुन कर दोनों के पिता आये
साँप आदमी को/आदमी साँप को
देख कर ठिठक गया/पीछे मुड़ कर
दोनों अपने-अपने घर चले गये
घर में/आदमी के बच्चे नेपूछा
पिता जी आपने उसे मारा क्यों नहीं
उसने कहा-बेटा
वह भी तो आदमी का ही रूप है।