भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शहर में साँप / 40 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:12, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
साँप
प्रार्थना करै रहै
हे भगवान
वैं केकरो डँसे तेॅ ऊ मरै नै
वही आदमी कैह रहल रहै/हे भगवान
वैं केकरो छू भी दैय तेॅ
ऊ मैर जाये।
अनुवाद:
साँप
प्रार्थना कर रहा था
हे भगवान
वे किसी को डँसे/तो वह मरे नहीं
वहीं आदमी कह रहा था/हे भगवान
वे किसी को छू भी दूँ
तो वह बचे नहीं।