भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गलफर में जहर / 8 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:54, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कुत्ता कुत्तिया सें
झगड़ा कैर रहल रहै
कैह रहल रहे-
चलैं आब जंगल
आदमी ढाय रहलै कहर
ओकरोॅ कौरो पर भी छै
ओकर नजर।
अनुवाद:
कुत्ता कुत्ती से
झगड़ रहा था
कह रहा था-
चलो अब जंगल
आदमी ढा रहा है कहर
अपने कौरा पर भी है
उसकी नजर।