भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गलफर में जहर / 20 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:07, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चौवन्नी नें
रुपया सें कहलकै-
भले ऊ
गांव-शहर सें
दूर होय गेलै
मुदा आय भी नेता
ओकरा सहेज केॅ रखने छै,
ओकरा कुछ कहो
ऊ बात-बात पर
चौवन्नी ही मुस्कावै छै।

अनुवाद:

चौवन्नी नें
रुपये से कहा-
भले वह
गांव-शहर से
दूर हो गयी
किन्तु
आज भी नेता
उसे सहेज कर
रखे हुए हैं,
उन्हें कुछ भी कहो
वे बात-बात पर
चौवन्नी मुस्कान ही छोड़ते हैं।