भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एकता / मीरा हिंगोराणी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:23, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीरा हिंगोराणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिकु-हिकु गुल गॾिजी,
ठहंदो आ गुलदस्तो
मिले बूंद सा बूंद त,
थिए सागर जो पसारो।
ऊंचो कयो देश जो नालो,
हथ में हथु मिलाए।
सबकु एकता जो ही उमदो,
अचो पढ़हायूं जॻ खे ॿारो।
जाति-पाति खे कयूं कैद,
लॻायूं एकता जो नारो!!