भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिली मोकल ममीअखे / मीरा हिंगोराणी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:41, 1 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीरा हिंगोराणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दाल न ॻरी देॻड़े मल जी,
ॿाटी ॿाई लुछण लॻी।
सड़ी वेयूं केवी-खुरपी,
मतो वैलु रंधिणे में।

आई डोड़ी घर धयाणी,
छाजो आ ही गीडु।
हड़ताल जो थियो ऐलानु!
ॾिनो कुकर सीटीअ ते ज़ोरु।

पचंदी कोन मानी,
अॼु घर में,
रखो सभई उपवासु।

आयो आर्डर ते पीज़ा घर,
ॾोड़ियो आयो मिस्टर-बर्गर,

थिया होश ख़ता भांडनि जा।
छंडे पलऊ सभई!!
भॻा ॿाहिर रंधणे मां!