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लस्सीअ जो मतंर / मीरा हिंगोराणी

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ॻालिह बांदर जे मन में उथी,
लॻो सड़क ते विकणण लस्सी।

आया भजं/दा रिछुऐं लोमड़ी,
आई गिलहरी उड़ी-उड़ी,

तीतऊं लस्सी थिया सभु मस्तु,
थी बांदर जी खूब कमाई।

आयो ओचतो दीनू मदारी,
कढ़ियई दॿ बांदर खे भारी।

उथ चढु़ रस्सोअ ते भाई,
न त कदुंसि तुहिंजी खूब पिटाई।

पुछु लिकाए भॻो बांदरु
भुलिजी वियो लस्सीअ जो मंतरु।