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प्रीत का बिरवा / श्वेता राय
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रोप दिया था प्रीत का बिरवा अपने मन के आँगन में
झूम झूम के लहराये ये अब की बरस के सावन में
प्रेम नाम है इस पौधे का
सुन सखियाँ थी इठलाईं
लगी बताने गुन इसके सुन
मन ही मन मैं हरषाई
सहकर सारी धूप छांव ये बढ़ता जाये हर क्षण में
झूम झूम के लहराये ये अब की बरस के सावन में
नन्हा पौधा बड़ा हुआ यूँ
जैसे सूरज चढ़ता है
भोर लालिमा से संझा तक
रूप अनेको धरता है
नेह लदी सब शाखायें हैं भरे जो खुशियाँ दामन में
झूम झूम के लहराये ये अब की बरस के सावन में
डाल डाल कुसुमित मंजरियाँ
सौरभ का ही दान करे
अंग अंग बहकाये ऐसे
जैसे मद का पान करे
तरसायेगा भ्रमरों को अब रूप रंग लिए यौवन में
झूम झूम के लहराये ये अबकि बरस के सावन में...