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काश! कभी / श्वेता राय
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गीत नही समझो इनको, ये मेरे मन के मीत हैं।
चटक फागुनी रंग लिये कभी
शरद सा सकुचाते हैं
गर्मी का आतप दिखे कभी
सावन सा लहराते हैं
मौसम के आने जाने का दिखलाते ये रीत हैं
गीत नही समझो इनको ये मेरे मन के मीत हैं
माटी की है गंध कभी तो
चूल्हे की है आग भी
चिड़ियों की चहचह है इसमें
रुनझुन पायल राग भी
जग में बहते जीवन का ये सुनवाते संगीत हैं
गीत नही समझो इनको ये मेरे मन के मीत हैं
हँसी लिए कभी भाभी की तो
कभी सास फटकार है
चाँद रात मनुहार पिया कभी
कनखी साजन प्यार है
नैनों से मिल नैनों में ही रचवाते ये प्रीत हैं
गीत नही समझो इनको ये मेरे मन के मीत हैं।