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लुट, लुटेरनि जी / अमुल चैनलाल आहूजा 'रहिमी'

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शाही शामियाने में
मेम्बरनि नवन खे
खणाइण क़स्म जी रस्म वक़्त
झलिजी जवान पियो हिकु
हथ संदसि हुआ हार गुल गुलाब जा
भॼ लताड़ थी शुरू
माण्हुनि लेखे
हारन में हूंदा दस्ती बम/
तहक़ीक़ात मां
पियो पतो
ऐं कई सची जवान
त उत्सवनि आहिड़नि में अक्सर
आहियां वेंदो आऊँ
पाऐ पोशाक खादीअ जी
झले झझा गुल
कंदे सन्मान चुंडयलनि जो
आहियां वठंदो फे़रे हथु
संदनि ई खीसन ते
जो
नाहे कमु कसो
लुट करण
लुटेरनि जी!