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उदारता / अमुल चैनलाल आहूजा 'रहिमी'
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खु़शीअ में रात गुज़ारीन था घणा,
त बि छो ग़म जो शिकार थियन था?
किथां चैनु मिले दिल खे हाणे
नाकाम महोबत जी मार ख़ाईन था!
दिल सां दिल जा सौदा नाहिन हित,
फक़त शरीर जा ई वापार थियन था!
मुजरे में रात जो गुल किरन था
सुबह जो मंदरनि में हार चढ़हनि था!
भॻवान पुॼारीअ अॻियां निमयल
कहिड़ा जॻ जा दस्तूर रहन था!