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वे नहा आते हैं गंगा में / मनीषा जैन

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मेरी आँख में
गहरे उतरना चाहते हैं
मेरे दिल को गज से नापना चाहते हैं
बहुत छोटा साबित करते हैं मुझे
फिर मेरे धैर्य की परीक्षा लेना चाहते है

मेरे गले की लम्बाई नापना चाहते हैं
मुझे तहस नहस कर
टांग देते है पेड़ो पर
मेरे मरने के बाद वे
मुझे जल्द से जल्द ठिकाने लगाना चाहते हैं

और फिर साफ पाक बच जाना चाहते हैं
जब मुर्दा सीने वाला सुनता है मेरी कराहट
वह कान में ठूंसता है रूई
नाक पर लगाता है कपड़ा

मेरे मरने के बाद वे
नहा आते हैं गंगा में
जैसे कि उन्होंने कोई अपराध ही नहीं किया
मेरे शरीर के साथ साथ
मेरी आत्मा का भी क़त्ल किया है
वे हत्यारे घूम रहे है
निहत्थे खुले आम
और मैं मरने के बाद भी
रस्मों के बंधनों से बंधी
रंभाती रहती हूँ सदा के लिए।

(पेड़ पर लड़कियों की लाश को लटकाये जाने के समाचार से क्षुब्ध होकर)