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आउं अमर जे दरि वञां-पेरें शल पंधिड़ो करे / लीला मामताणी

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आउं अमर जे दरि वञां-पेरें शल पंधिड़ो करे।
कयो दर्शनु जंहिं लाल जो-
सो जल्दु हिन भव खां पार तरे॥

1.
रात ॾींहं सारियां थी लालण
दर्शन लाइ मनु प्यासो आ
ज्ञान जो ॿारिजि ॾीअड़ो अंदर में
दृष्टि करुणा जी धरे-पेरें शल पंधिड़ो करे॥

2.
सिक अंदर में मुंहिंजे घणी
मिलन्दो कॾहिं झूलणु धणी
ओट बसि तुंहिंजी खपे
ॿिया सभेई कम लालणु करे-पेरें शल पंधिड़ो करे॥

3.
ओट वरिती अथमि तुंहिंजी
प्रीति जॻ जी सभु कची
सिक सॼण ॾे सची
त हिरदो मुंहिंजो ठरे- पेरें शल पंधिड़ो करे॥

4.
लालण मां तो दरि अचां
भेरो शल मां कॾहिं कीन भञां
आसिरो तुंहिंजो अथमि ॾे प्रेम जो प्यालो भरे॥
पेरें शल पंधिड़ो करे॥