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बे ख़बरि / मुकेश तिलोकाणी
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राति बूंदूं वसियूं
थधी हवा
दरीअ मां
घूघाट कंदी
अंदरि घिड़ी आई।
ऐं तूं बेख़बरि।
बंदे सिर्फ़
ज़मान हाल जा
सपना ॾिठा।
ॿांहि वराए
हलो कयुइ
तुंहिंजे रेशमी जु़लिफ़ुनि जी
तंदु छिकी
पर तूं...!