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टिरंगा / मुकेश तिलोकाणी

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टिरंगा!
तूं, सदाईं
फड़िफड़ाईंदो रहिजि।
लहिराईंदो रहिजि।
खाइण लाइ टुकुर ऐं
पाइण लाइ लांग बख़्शििज
भला, पंहिंजनि जी
कहिड़ी दिलि में,
तूं सदाईं असांजा
सलाम क़बूल कजि
मिठिड़ियूं ॿोलियूं ॿुधिजि
अंगल आरा सहिजि
असांजी शक्तिीअ ऐं
ॿुधीअ खे दादु ॾिजि
तूं, सदा,
आबाद रहिजि।