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थधी हीर जियां / मुकेश तिलोकाणी

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तूं, शायदि
थधी हीर जियां
अचीं ऐं हली वञीं।
आऊं उन वक़्तु
हुजां प्रभाती
मिठीअ निंड में
जंॾहिं अखि खुले
साम्हूं सिजु पसां
चादर खणां
ऐं, मुंहं ढके छॾियां