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रुली मुई / मुकेश तिलोकाणी
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रुली मुई
टहिक ॾिए
जम्प ॾिए
जाइ बदिले।
ज़िंदगीअ जो सफ़रु
पूरो करण लाइ
हितां खां हुति
पंध सटे
वक़्तु सफ़िलो करे
वॾा साह खणे
अखियूं मिचकाए
वांदिकाईअ जी विंदुर
सुबुह जो ॿुहारो
ॾींहं जो चुल्हि चमटो
शाम जो सत्संगु
राति जो तारा ॻणे।