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मन पंहिंजे खे मारि / लीला मामताणी
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मन पंहिंजे खे मारि-
मन पंहिंजे खे मारि,
तुहिंजा झूलणु कंदो ॿेड़ा पार।
1.
छॾि हठु तकबरु मान वॾाई।
करि बन्दा सभिनी सां भलाई।
साझुरि पाणु संभारि,
मिठिड़ा मन पंहिंजे खे मारि॥
2.
क्रोधु छॾे तूं मिठिड़ो ॿोलिजि।
झूलण खे दिल अंदर ॻोलिजि।
दया भी दिल में धारि।
जीअड़ा, मन पंहिंजे खे मारि॥
3.
चार ॾिहारा हुस्न जवानी।
थीन्दी ‘निमाणी’ हिक ॾींहुं फ़ानी
रखु झूलण सां प्यारु॥
बन्दा, मन पंहिंजे खे मारि॥