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कूड़ जो जनमु (कविता) / मुकेश तिलोकाणी

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कूड़
”सच“ खांपोइ
जनमु वरितो आहे!
शायदि
तव्हां खे सुधि न पई।
उन ॾींहुं
मिठाईअ जा
दुकान बंदि हआ।
मिठे वात खां
रहिजी विया।
हाणि, हथ पेर
हलाइणु शुरु कया अथाई
बांबड़ा बि पाईंदो
आधार सां
उथी बि बीहंदो
पोइ, तिखी डोड़ पाईंदो
अव्हां
चुंजहीन अखियुनि सां
ॾिसंदा रहिजो...