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सूरनि जी सौगात / लक्ष्मण पुरूस्वानी

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सूर जमाने जा सही वञां सभि मगर
दई ग़म कयो आहे तो बेसबर

उमेदुनि इरादनि सां दिल मूं दिनी
संग दिल कयो आ तो मूंसा कहर

मरी जे वञां त बि दुआऊं कन्दुसु
लॻे शाल तोखे न कहिंजी नज़र

टिड़नि जीअं गुलिड़ा, तू टिडंदी रहीं
मिले मुहिब, ताखे बि मुहिंजी उमर

जुदाईअ सां जिअरे तो मारे छदियो
बणी लाशु भिटिकां थो मां दर-बदर

बहारु चमन जूं बि वीरान थियूं
खणी याद आई हवा जी लहर

दिनी तो त सूरनि जी सौग़ात आ
रहीं दर्द खां तूं सदा बेअसर