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पुलि / लक्ष्मण पुरूस्वानी

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मुहिंजे ऐं तुहिंजे विच में,
जेका पुलि हून्दी हुई

दरी पई आहे,
उनमें सीर पइजी वई आहे

हाणे पुराणा दीहं ॼणु त,
हथनि मां छुटल कबूतर

ऐं पहिंजा सम्बन्ध जींअ,
रवाइती मौका एकान्त जा

हाशिये जियां, पासीरा मन,
ठेस सां, दर्द सां दरी पिया आहिनि

बुनियाद में आकीचार दारुं,
ऐं ही टुटल दिलियूं

बनावटी मुश्क सां,
वरी बि खुद सां रोज जो दोखो

ॼणु फाटल तस्वीर जियां,
वजूद, सुदिका भरे रहियो आ!!