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पीड़ा ई पीड़ा / लक्ष्मण पुरूस्वानी

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तन में पीड़ा, मन में पीडा
ॻोठ, गली, घर घर में पीड़ा
िसो कंडनि जी दाढाई
दिनी गुलनि खे केदी पीड़ा
कारा कारा बादल आया
मोटिया दई सांवण खे पीड़ा
कजनि पचारुं छा गैरनि जूं
दिनी जदंहि आ पहिंजनि पीड़ा
जुवानी छा जजबातूं दींदी
मिली हुजे नंढपण में पीड़ा
पेर छुहूं था गले मिलूं था
तदंहि बि भोॻियूं वेठा पीड़ा
बचणु दुखियो आ हिन दुनियां खां
रहिणो आ जे साहिबी पीड़ा
आबु अखियुनि में आयो भरिजी
अश्कनि में थी ज़ाहिर पीड़ा
दिसी कूमायल चेहरनि खे
दर्पण खे पिण थी आ पीडा
कुछे नथो पर लुछे थो ”लक्षमण“
धरती बि धुॿे थी भोॻे पीड़ा!!