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गेंद गिरी / रमेश तैलंग

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अरे बाप रे! फिर आंटी के
घर में जाकर गेंद गिरी।
बहुत बचाया लेकिन फिर भी
टप्पे खाकर गेंद गिरी।

अब आंटी के गुस्से से
भगवान् बचाना हम सबको,
काम कठिन है, फिर भी कोई
राह सुझाना हम सबको,
गलती अपनी है, पर
बल्ले से टकाराकर गेंद गिरी।

हमें पता है, माफ़ी की अब
चाल नहीं चलने वाली,
और आंटी के आगे अब
दाल नहीं गलने वाली,
पहले भी तो कई बहाने
बना-बनाकर गेंद गिरी।

कैसा भी हो गुस्सा उनका
पर अब तो सहना होगा,
‘गेंद ‘फैन’ है बड़ी आपकी’
आंटी से कहना होगा,
फैप नहीं होती तो कैसे
यूँ जा-जाकर गेंद गिरी,