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आफत में है जान / रमेश तैलंग
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बड़के भैया रंग-रंगीले
खूब चबाएँ पान।
मँझले भैया गप्प-गपीले
दिनभर खाएँ कान।
हमारी आफत में है जान।
हम दोनों का हुकुम बजाएँ,
रूठें जब वे, हमीं मनाएँृ,
फिर भी तेवर हमें दिखाएँ
जैसे तीर-कमान।
हमारी आफत में है जान।
ठाठ-बाट तो रखते ऐसे,
मालिक हों दुनिया के जैसे,
देते न लेकिन दस पैसे,
हैं कंजूस महान।
हमारी आफत में है जान।