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मेढक की पतलून / प्रकाश मनु

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रेनी सीजन में मेढक जी
सिलवाने पहुँचे पतलून,
जिसे पहनकर घूमा जाए
अल्मोड़ा या देहरादून!

फिर क्या, कपड़े की दुकान पर
उछल-कूद वे लगे मचाने,
घंटे भर देखा-भाला, फिर
झुँझलाकर बैठे सुस्ताने!

बोले-मुझको दो वह कपड़ा
नहीं भीगता जो पानी में,
जिसे पहनकर रहूँ घूमता
मैं वर्षा की मनमानी में!

दुकानदार बोला-बोम्बे से
मँगवाया है ऐसा कपड़ा,
तीन महीने में आएगा
खत्म करो तब तक यह झगड़ा!

गुस्से में दो हाथ उछलकर
मेढक जी तब नीचे आए,
बोम्बे जाकर ही ले लूँगा-
कहकर जोरों से टर्राए!