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कहाँ तक बखाने / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
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कहाँ तक बखानें।
जितना
और जहाँ तक
अभी देखना चाहें,
दिखती रहतीं:
उढ़के हुए द्वार के पीछे
राह बिछी दो आँखें
अर्धखुली दो बाहें;
जिनकी मर्म-व्यथा को
दुनियाँ भर के लोग-
न जानें।