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रोशनी की सीढ़ियाँ / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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लौ!
ये हैं:
कुछ बची खुची
रोशनी की सीढ़ियाँ,
इन्हें रख गये हैं-
शून्य अन्तराल में
आलोक झरते
माटी के दिये,
वे जानते थे-
कुछ न होगा तुम्हारे किये,
ऊँचाइयों पर चढ़ना
किन्तु
एक बात न भूलना,
छोटे दिखें तों-
बौने कहना
....घूरना,
लेकिन
ऊपर न थूकना।