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पेड़ ये बबूल के / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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पेड़ ये बबूल के।
बरस-बरस में
एक बार
पीताम्बर का रंग चुरा लिए
बुरा क्या किए
मखमली मुलायम फुनगी-फुनगी-
फूले
काँटों भरा जीवन भूल के।
जिये
घर-घर ईंधन बनने के लिए
दाँतों-तले दबने के लिए
एक बार चुभने पर
लाख-लाख गाली सहने के लिए
हिम-आतप बोझ धरे काँधे,
उपल-वृष्टि, विद्युत-प्रहार
ऋतुओं के रुद्र नयन बाँधे,
-वक्ष से लगे हर प्रतिकूल के।
जनम-जनम झँकरीली-
चहारदीवारी बने रहे,
घर की बगिया की-
रखवाली के लिए भाले लिए तने रहे-
अश्व चढ़े धूल के।