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मंथन / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

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बेमतलब बहलाबोॅ नै,
हल्का में टरकाबौ नै।

समझाी के बुतरू हमरा,
झूठ-मूठ समझावोॅ नै।

सौंसे दुनिया के रानी हम्में,
बाहर ताला द्वार लगावोॅ नै।

माय आँख पहरा में सीखलौं,
देवी कहि केॅ भरमावोॅ नै।

बलिदानी पाठी नै हम्में,
लकड़ी रं सुलगाबोॅ नै।