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साँझ / शारदा झा

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साँझक पहिल पहर
एखने आबि बैसल अछि
थाकल-मांदल
बेचैत भरि दिन आस-भरोस
छिट्टा मे नुकेने
लाल सुरुज के माथ पर उघने
नवयौवना कुजरनी सन
बँटैत रहल इजोत आ जीवन
सगरे दिन
सुरुजक छाया बनि
मुस्काइत अछि घोघक त'र सँ
जाहि पर टाँकल छै
चान आ तरेगन सब
आ लुटा रहल अछि अपन अरजल सब किछु
भगजोगनी आ झिंगुर सब पर
केने अछि सब अनघोल
ओकरा अबिते देरी
तुलसीचौराक दिबारी
सेहो लेसल गेल
बड्ड नेहोरा सँ तकैत अछि हमरा दिस
हमर अंगना मे बैसल अलसाएल सांझ
जे जरबियै हम एकटा ढिबरी आ लालटेन
जकर इजोत मे बहि जाइ
अन्हारक स्वेद
आ भ जाइ फेर ओ स्फूर्तिवान
देखए लागए एकटा नबका स्वप्न
फेर नबका दिनक
उल्लासक उजास छिरिया
चारू कात पसरि जाइ भगजोगनी
गर्भ मे धारण कैने दिनकर
ओकर सर्वस्व आ समुच्चा संसार