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आभासी यथार्थ / शारदा झा
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आभासी यथार्थ
एकटा दलदल जकाँ पसरल
लील रहल अछि स्वलीन भेल
बुद्धिजीविक हेंज के
जकरा कोनो होश नहि
समाजक वास्तविक्ताक
एकटा नबका परिदृश्य बनल जा रहल अछि
टूटि क' खसैत भ्रम के
लागि जाइत छै पाँखि
आ जा सटैत अछि ओ
दलदल मे धँसैत कोनो निर्जीव कल्पना केँ
काहि काटिक' मुइल अभिलाषा मे
होमय लगैत अछि एक बेर फेर
कृत्रिम जीवनक संचार
अभिमान होमय लगैत अछि हावी
छद्म रूप धेने ताक' लगैत अछि
अंधकूप सँ बहरेबाक व्योंत
दादुर जकाँ इजोतक कोनो भान नहि
किंचित
ध्वनि तरंग पर बैसि जखन
कल्पना पसार' लगैतअछि मिथ्याचार
आभासी यथार्थ ल' लैत अछि
सम्पूर्ण अस्तित्वक बोध के
अपन बन्धन मे
बुद्धिजीवी मातल अपन अन्धकार मे
होइत रहै छथि हविष्य
आ दलदल होइत जाइत अछि
कनि आओर बेसी वीभत्स
कनि आओर समृद्ध