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ज़िकर ना इशक मज़ाजी लागे / बुल्ले शाह
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ज़िकर ना इशक मज़ाजी लागे।
सूई सेवे ना बिन धागे।
इशक मज़ाजी दाता है।
जिस पिच्छे मस्त हो जाता है।
इशक जिन्हाँ दी हड्डीं पैंदा।
सोई निरजीवत मर जांदा।
इशक पिता ते माता ए।
जिस पिच्छे मस्त हो जाता ए।
आशक दा तन सुक्कदा जाए।
मैं खड़ी चन्द पर के साए।
वेख माशूकाँ खिड़ खिड़ हासे।
इशक बेताल पढ़ाता है।
जिस ते इशक एह आया है।
ओह बे-बस कर दिखलाया है।
नशा रोम रोम में आया है।
इस विच्च न रत्ती ओहला है।
हर तरफ दिसेन्दा मौला है।
बुल्ला आशक वी हुण तरदा है।
जिस फिकर पीआ दे घर दा है।
रब्ब मिलदा वेक्ख उचरदा है।
मन अन्दर होया झाता है।
जिस पिच्छे मस्त हो जाता है।
शब्दार्थ
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