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तांघ माही दी जलीआँ / बुल्ले शाह

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तांघ माही दी जलीआँ,
नित्त काग उडावाँ कल्लिआँ।

कउडी दमड़ी पल्ले ना काई,
पार वंडण नूँ मैं सधराई,
नाल मलाहाँ दे नहीं अशनाई<ref>दोस्ती</ref>,
झेड़ा कराँ वलल्लीआँ।

तांघ माही दी जलीआँ,
नित्त काग उडावाँ कल्लिआँ।

नैं<ref>नदी</ref> चन्दल<ref>गुस्से में आई हुई</ref> दे शोर किनारे,
घुम्मण घेर विच्च ठाठाँ मारे,
डुब्ब डुब्ब मोए तारू भारे,
जे शोर कराँ ताँ झल्लीआँ।

तांघ माही दी जलीआँ,
नित्त काग उडावाँ कल्लिआँ।

नैं चन्दल दीआँ तारू फाटाँ<ref>तैरती लहरें</ref>,
खाली उडीकाँ माही दीआँ वाटाँ,
इशक माही दे लाइआँ चाटाँ,
जे कूकाँ ताँ मैं गलिआँ।

तांघ माही दी जलीआँ,
नित्त काग उडावाँ कल्लिआँ।

नैं चन्दल दे डूंघे पाए,
तारू गोते खान्दे आए,
माही मुंडे पार सिधाए,
मैं केवल रहीआँ कलीआँ।

तांघ माही दी जलीआँ,
नित्त काग उडावाँ कल्लिआँ।

पार झनाओं जंगल बेले,
ओत्थे खूनी शेर बघेले,
झब रब्ब मैनूँ माही मेले,
मैं इस फिकर विच्च गलिआँ।

तांघ माही दी जलीआँ,
नित्त काग उडावाँ कल्लिआँ।

अद्धी रात लटकदे तारे,
इक्क लटके इक्क लटकणहारे,
मैं उठ आई नदी किनारे,
हुण पार लंघण नूँ खलीआँ।

तांघ माही दी जलीआँ,
नित्त काग उडावाँ कल्लिआँ।

शब्दार्थ
<references/>