बंसी काहन अचरज बजाई / बुल्ले शाह
बंसी काहन अचरज<ref>अनोखी</ref> बजाई।
बंसी वालिआ चाका राँझा,
तेरा सुर है सभ नाल साँझा
साडी सुरत तैं आप मिलाई।
बंसी काहन अचरज बजाई।
बंसी वालिआ काहन कहावें,
सब दा नेक अनूप मनावें
अक्खिआँ दे विच्च नज़र ना आवें,
कैसी बिखड़ी खेल रचाई।
बंसी काहन अचरज बजाई।
बंसी सभ कोई सुणे सुणावे,
अरथ इसका कोई विरला पावे,
जे कोई अनहद की सुर पावे,
सो इस बंसी दा सौदाई।
बंसी काहन अचरज बजाई।
सुणीआँ बंसी दीआँ घँगोराँ<ref>घूँघकार</ref>,
कूकाँ तन मन वाँङू मोराँ,
डिðिआँ इस दीआँ जोड़ाँ तोड़ाँ
इक सुर दी सभ कला उठाई।
बंसी काहन अचरज बजाई।
इस बंसी दा लम्मा लेखा,
जिस ने ढूँढा तिस ने देखा,
शादी इस बंसी दी रेखा,
ऐस वजूदों<ref>शरीर में से</ref> सिफ्त<ref>गुण</ref> उठाई।
बंसी काहन अचरज बजाई।
इस बंसी दे पंज सत तारे,
आप आपणी सुर भरदे सारे,
इक्क सुर सभ्दे विच्च दम मारे,
साडी इस ने होश भुलाई
बंसी काहन अचरज बजाई।
बुल्ला पुज्ज पए तकरार<ref>झगड़ा</ref>,
बूहे आण खलोते यार,
रक्खी कलमे<ref>नाम, परमात्मा में विश्वास</ref> नाल ब्योहार,
तेरी हज़रत भरे गवाही।
बंसी काहन अचरज बजाई।