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मुँह आई बात ना रहिन्दी ए / बुल्ले शाह

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मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।
झूठ आक्खाँ ते कुझ बचदा ए,
सच्च आखिआँ भाँबड़ मचदा ए,
जी दोहाँ गल्लाँ तो जचदा<ref>रुकता</ref> ए,

जच जच के जिहबा कहिन्दी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

जिस पाया भेद कलन्दर<ref>फकीर</ref> दा,
राह खोजिआ आपणे अन्दर दा,
उह वासी है सुख मन्दर दा,

जित्थे कोई ना चढ़दी लहिन्दी ए
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

इक लाज़िम<ref>ज़रूर</ref> बात अदब दी ए,
सानूँ बात मलूम सभ दी ए,
हर हर विच्च सूरत रब्ब दी ए,

किते ज़ाहर किते छुपेन्दी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

ऐथे दुनिआँ विच्च हनेरा ए,
एह तिलकण बाज़ी वेहड़ा ए,
वड़ अन्दर वेखो केहड़ा ए,

क्यों खुफतण<ref>मूर्ख</ref> बाहर ढूँढ़ेदी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

ऐथे लेखा पाओं पसारा ए,
एहदा वक्खरा भेद निआरा ए,
एह सूरत दा चमकारा<ref>चमत्कार</ref> ए,

जिवें चिणग दारू विच्च पैंदी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

किते नाज़ अदा दिखलाईदा,
तिे हो रसूल मिलाईदा,
किते आशिक बण बण जाईदा,

किते जान जुदाई सहिन्दी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

जदों ज़ाहर होए नूर हुरीं,
जल गए पहाड़ कोह तूर हुरीं,
तदों दार चढ़े मनसूर हुरीं,

ओत्थे शेखी पेश ना वैंदी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

जे ज़ाहिर कराँ इसरार<ref>भेद, रहस्य</ref> ताईं,
सभ भुल्ल जावन तकरार<ref>झगड़ा</ref> ताईं,
फिर मारन बुल्ले यार ताईं,

ऐथे मुखफी गल्ली सोहेंदी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।
असाँ पढ़िआ इलम तहिककी<ref>गुप्त, छिपा हुआ</ref> ए,
ओत्थे इको हरफ हकीकी ए,
होर झगड़ा सभ वधीकी ए,

ऐवें रौला पा पा बहिन्दी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

ऐ शाह अकल तूँ आया कर,
सानूँ अदब अदाब सिखाया कर,
मैं झूठी नूँ समझाया कर,

जो मूरख माहनूँ कहिन्दी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

वाह वाह कुदरत बेपरवाही ए,
देवें कैदी दे सिर शाही ए,
ऐसा बेटा जाया माई ए,

सभ कलमा उसदा कहिन्दी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

इस आजिज़ दा की हीला ए,
रंग ज़र्द ते मुखड़ा पीला ए,
जित्थे आपे आप वसीला ए,

ओत्थे की अदालत कहिन्दी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

बुल्ला सहु<ref>वो, पति, प्रियतमा</ref> असाँ थीं वक्ख नहीं,
बिन सहु थीं दूजा कक्ख<ref>कुछ</ref> नहीं,
पर वेखण वाली अक्ख नहीं,

ताँही जान जुदाइयाँ सहिन्दी ए।
मुँह आई बात ना रहिन्दी ए।

शब्दार्थ
<references/>