भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राँझा जोगीड़ा बण आया / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 6 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुल्ले शाह |अनुवादक= |संग्रह=बुल्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ऐस जोगी दी की निशानी,
कन्न विच्च मुन्दराँ गल विच्च गानी।
सूरत इस दी यूसफ सानी,
इस अलफों अहल<ref>अरूप, रब</ref> बणाया।
राँझा जोगीड़ा बण आया।
रांझा जोगी ते में जोगिआणी,
इस दी खातर भरसाँ पाणी।
ऐवें पिछली उमर विहाणी,
ऐस हुण मैनूँ भरमाया।
राँझा जोगीड़ा बण आया।
बुल्ला सहु दी एह गल बणाई,
प्रीत पुराणी शोर मचाई।
एह गल्ल कीकूँ छप छुपाई,
नी तख्त हजारेओं धाया।
राँझा जोगीड़ा बण आया।
वाह सांगी सांग रचाया।
शब्दार्थ
<references/>