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के पांगत पाखंड / विकाश वत्सनाभ

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हमर गामक छाती प'र ठाढ़
सहस्रबाहु पिपरक गाछ
ऑक्टोपस सन जमीनस्थ भेल
कोरा मे खेलबैत सुगा-मैना
धोधरि मे पोसैत नाग
ई गाछ नै, गामक इतिहास थिक
अहि गाछक छाहरिमे
कनिया-पुतरा खेलाइत
बौआ भेल जुआन
एकर जबूतरा प'र तास खेलि
जुआन भेल बूढ़
मुदा ई एखनहुँ हरिआएल
पछबामे अंगैठी करैत
ठाढ़ अछि सीना तनने
अहि पिपरक गाछ त'र
माँथ टेकैत गामक संस्कार
एकर आँगनमे साँझे जरैत
आस्थाक दीप
कोनो राति होइत झिझिया
कोनो राति सामा
अहि पिपरक आदिपुरुख
नमरी घुसखोर
जे बिनु छागरक शोणित पीने
नहि करैत छथि
इंद्र लग गौंआक पैरबी
तें अखाढ़ी पुजैत गाम
मातल रहैछ हिनक खुसामदमे
अहि गाछक अधबएसू ठाढ़ि
खरंजाक चुम्मा लेल उताहुल
दिनानुदिन झुकैत
बाधित करैत गामक अबरजात
कहियो जेलोसँ खसैत पूत
कहियो फुटैत पुतौहक कपाड़
तें की काटि देतै एकर ठाढि ?
हा ! के करत एहन अनर्थ ?
के पाँगत पाखंड ?
केकरा नहि छै अपन संततिक ड'र
के बेसाहत कलेस
एहने किंवदंतीमे हँसैत गाम
अपन टेटर हंसोथि
पिपरक गाछ त'र मूड़ी निहुँरबैत
कहि उठैत छै
जय डीहबार बाबा...