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हर आँसू / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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हर आँसू मोती है मेरे लिए तुम्हारा,
हर मुसकान रजत की रेखा-सी उज्ज्वल है
औ’ सुहाग-सिन्दूर अँधेरे मेरे जीवन
के पथ के दीपक की स्वर्णिम ज्योति अचल है॥

1.1.59