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औरत और ईश्वर / कुमार कृष्ण

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पानी-पानी माँगते हुए
भरी जवानी में चली गई थी छोटी अम्मा
यह बात उतनी ही सच है
जितनी यह कि
उसी ने सिखाये थे मुझे वर्णमाला के अक्षर
हर रात को सुनाती थी छोटी अम्मा
राजा-रानी की अधूरी कहानी
उसी में जोड़ देती थी अगले दिन
सौदागर की कहानी
छोटी अम्मा छोटी होकर भी
बहुत बड़ी थी
लालटेन की रोशनी में
पता नहीं क्या ढूँढ़ती थी
कल्याण के हर नये अंक में
छोटी अम्मा
गाँव के घर में क्यों बनाना चाहती थी
छोटी अम्मा एक मन्दिर
इसे जान पाया मैं बहुत देर बाद
शायद हर औरत के अन्दर होते हैं-
असंख्य मन्दिर
जहाँ जलती रहती है हर वक्त्त
धैर्य और धर्म की आग
बजती रहती हैं हर पीड़ा में भी
ख़ुशी की घण्टियाँ
जब-जब डरता है आदमी
वह तब-तब ढूँढ़ता है ईश्वर
औरत हर दीवार में ढूँढ़ लेती है ईश्वर
औरत करती है पैदा अपनी कोख से
कई-कई ईश्वर।