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शब्दों का सपना / कुमार कृष्ण

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छोटी सी गुलेल है कविता
शब्दों का सपना है कविता
कविता है पृथ्वी का राग
धरती की धरोहार
ज़िन्दगी का बीजगणित
दिलो-दानिश की शरारत
सच्चे झूठ की पांथशाला
तसव्वुर का तोशाखाना
इनसानियत की अध्यापिका
संवेदना का सन्दूक

वह है आग और राग का बादल
अमर्ष और संघर्ष का दरिया
मुक्तिबोध का चाँद है कविता
ऋतुराज का अबेकस
प्रसाद की कामायनी, दिनकर की उर्वशी
केदार का बाघ सभी कुछ एक साथ
कविता है सुदामा पांडे का प्रजातन्त्र
वह है एक लाल गाड़ी, एक बैल गाड़ी
संसद से सड़क तक दौड़ती हुई

कविता है-
खुरों की तकलीफ़, मनुष्यता का दुःख, आखर अनन्त
वहाँ नगाड़े की तरह बजते हैं शब्द
उड़ती है भूरी-भूरी ख़ाक धूल
बची हुई पृथ्वी पर
जब बरसते हैं कालिदास के मेघ
तब लगता है बजने रात में हारमोनियम
गुनगुनाने लगती है ज़िन्दगी की ग़ज़ल
जगजीत सिंह के होठों पर।