भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूलों को चुराते हुए / प्रेरणा सारवान

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:32, 12 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेरणा सारवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर से देखा है
या सुना है मैंने कि
घास बहुत कोमल होती है
न कभी छुआ
न कभी चलकर
देखा है
पाँवों ने उस पर
परन्तु जानती हूँ
और सहा है मैंने
काँटे बहुत तीखे
कठोर होते हैरहें
क्योंकि कई बार
टूटे हैं हृदय में
चुभे हैं हाथों में
फूलों को चुराते हुए ।