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बिजली / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

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अट्टहास कर, पापी का मैं-
हृदय हिलानेवाली हूँ;
गगन-गोद में नृत्य-मग्न मैं
करालिनी हूँ काली हूँ!

पिशाचिनी हूँ शोणित प्यासी
क्रोध-मूर्ति, मैं हूँ न सरल;
मृत्यु-सरीखी लिये घूमती
प्रलय-पात्र में नाश-गरल!

मेघों के विप्लव-दल की मैं
हूँ नवीन-नायिका उदण्ड;
चिनगारी हूँ सर्वनाश की
कुटिल चक्र चालिनी प्रचण्ड!

हो सवार द्रुत बादल-रथपर
खोज रही हूँ मैं निर्भय-
कंसराज का पता; हुआ है
आज दुष्ट का पापोदय!

बनकर आग बरस जाऊँगी
शक्तिशालिनी मैं तत्काल
चिह्न न शेष रहेगा कोई
अन्यायी का क्षुद्र विशाल!
21.6.28