भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बूढ़ा पहर / योगेन्द्र दत्त शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:20, 15 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर पल उदासी बुन रहा
यह सांझ में डूबा नगर!

धूमिल क्षितिज पर बैंजनी
सरगर्मियां बढ़ने लगीं
तरुणाइयां बूढ़े पहर की
सीढ़ियां चढ़ने लगीं
सुर्खी लिये सूरज
धुंए-सा स्याह होता जा रहा
तनहाइयां तम के उभरते
हाशिये पढ़ने लगीं

सुनसान होती जा रही है
गीत की लम्बी डगर!

दिन की जलन मन में लिये
अवसन पंछी सो गया
संगीत का स्वर नर्म सांसों में
कहीं पर खो गया
सूने ठहाकों से
जलाशय का कलेजा कांपता
कोई निगाहों में उमर के
शोख सपने बो गया

मन पर उतरती जा रही है
एक खामोशी मगर!