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आवाज़ों के आदमखोर जंगल में / विनोद शर्मा

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पहाड़ों, विमानों और शहरों को त्रस्त करते
धमाकों से भयभीत अपनी बच्ची को
सुलाने की खातिर ढूंढ रहा हूं मैं
एक लोरी
डूब जाते हैं जिसकी जादुई लय में धमाके
कौन है? कहां है वो मां
जिसके कंठ में कैद है वो लोरी
जिसकी तलाश में भटक रहा हूं मैं
दर-बदर बरसों से
और जिसे मुक्त कराके
ले जाऊंगा मैं
हर भयभीत बच्चे के कान के पास
आवाजों के इस आदमखोर जंगल में।