भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रणय / विनोद शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:25, 15 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शब्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रिय!
प्रणय में-
अधूरेपन
अजनबीपन और उदासीनता को
कब तक हम ढोते फिरें?
क्यों न हम,
एक दूसरे की देह की बांसुरी में
अपनी-अपनी सांसों और धड़कनों के
स्वर भर दें?
जिएं या मरें
लेकिन प्यार तो करें।