Last modified on 17 मार्च 2017, at 10:32

रहस्य जीवन का / कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:32, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमारेन्द्र सिंह सेंगर |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जीवन रूपी रहस्य को
मत खोज मानव,
डूब जायेगा
इसकी गहराई में।
तुम से न जाने कितने
डूब गये इसमें पर
न पा सके तल
जीवन रूपी सागर का।
छिपा है मात्र इसमें ढ़ेर
लाचारी का,
अंबार बेबसी का।
नदी है कहीं आँसुओं की,
तो कहीं आग है नफरत की।
चारों ओर बस लाचारी है,
कहीं गरीबी का उफान है
तो कहीं भूख का तूफान है।
नहीं रखा है कुछ भी
खोज में इसकी,
घिर कर इसमें पछतायेगा,
सिर टकरायेगा पर
न पा सकेगा रहस्य
इस जीवन का।