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हरियाली के बोल / विष्णुचन्द्र शर्मा
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बिंदास के कवि बलभीम राजमोरे को मैं
औरंगाबाद में छोड़ आया हूँ!
छोड़ आया हूँ: रूई के खेत को!
छोड़ आया हूँ: एलोरा की रंग फंेकती कला को!
छोड़ आया हूँ: गुफा-दर-गुफा में
चुप बैठे बुद्ध के पास अपनी थकान को!
बर्थ पर वह युवती
गणना कर रही है वैज्ञानिक समय का
ट्रेन के साथ ताजा धान का खेत दौड़ रहा है!
और मैं चुपचाप
हरियाली के बोल कोरे कागज पर उतार रहा हूँ!