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घिरी रात में / विष्णुचन्द्र शर्मा
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रात घिरेगी
दूर पहाड़ी पर...!
हँसते नभ पर मैं
चित्र रचूँगा औ पेड़ों से बात करूँगा
दूर पहाड़ी पर
गाऊँगा खुले कंठ से
घिरी रात में!