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अपना अपना बनारस / विष्णुचन्द्र शर्मा
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वह
नेटवर्क से विवाह का रिश्ता
जोड़कर
आया है बनारस!
युवती उसे दिखा रही है
अपना बाज़ार!
मैं नक्शे में खोज रहा हूँ
अपना नगर!
वह साउथ कोरिया से
आया है देखने सूरज गंगा में
सोने का पथ बनाकर
क्या सोचता है मुझ पर!
घाट की सीढ़ियां चढ़ते हुए
उसने देखा गंगा को दौड़ते हुए!
आकर्षक आँखों से
कनाडावासिनी ने पूछा:
‘यह आपका नगर है!’
खुले दिल के आदमी ने
उत्तर दिया: ‘यह अपना-अपना बनारस है!’
फिर कनाडिरून युवती और अमेरिकी
केनेश जे. ओंकिफे
ने मुझे ऐंटीक की तरह देखा।
और अपने ‘ग्रीनविच एंटिक्स’ के खजाने में
चस्पाकर दिया मेरे शहर को!
बनारस की कला, पेंटिंग और मूर्ति-सा रह
गया मैं... स्तब्ध!
मैं अपने बनारस में खोजता रहा
दुनिया की अविस्मरणीय कला...